ऑनलाइन रिश्ते????????????
| 1:21 PM (5 hours ago) |
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रसोई के सब काम निपटाकर सीधे अपनी मनपसंद दुनिया "मोबाइल" की दुनिया मे चली गयी। व्हाट्सअप खोला। इतने सारे ग्रुप, पारिवारिक, दोस्तो के, समाज के, पड़ोसियों के।
2 घंटे बाद मोबाइल देखो तो संदेशो का समंदर आया हुआ होता है। जिसमे डूब जाना बहुत सुखदायक होता है। फिर शुरू होता है, संदेश पढ़ने और अग्रेषित करने का सिलसिला।
हाँ तो!!! मोबाइल में संदेश देख रही थी तो पता चला कि मौसी सास के बेटे की शादी पक्की हो गयी। तिलक भी हो गया। अच्छी जोड़ी थी। सभी ग्रुप मेंबर्स , जो कभी पारिवारिक सदस्य कहलाते थे, बधाई दे रहे थे।मैंने भी बधाई दे दी और कार्य सम्पन्न।
अरे!!मिसेज मेहता (मेरी पड़ोसन) के नए घर का मुहूर्त है दो दिन बाद। हम्म!!उनके घर का काम तो चल रहा था। लेकिन महज़ 100 कदम की दूरी पर रहने के बावजूद उन्होंने व्हाट्सएप पर निमंत्रण दिया।
निमंत्रण के फोटो के नीचे एक पंक्ति" कृपया इसे ही हमारा व्यक्तिगत निमंत्रण माना जाए", जो हमे असमंजस में डाल देता है कि हमे जाना चाहिए या नहीं!!!
बच्चे अब बड़े हो गए, अपना जन्मदिन अपने दोस्तों के साथ बाहर ही मानते हैं। पैसे लेकर बेटा दोस्तो के साथ चला गया।आधे घंटे बाद अपने ही बेटे की जन्मदिन पार्टी को फेसबुक पर सीधा प्रसारण (लाइव) देखने का मौका मिला।
राखी का त्यौहार आया। अपने एक मौसेरे भाई को जो कि मेरा हमउम्र ही था, हमारी बहुत पटती थी, राखी भेजी। राखी के दिन शाम को व्हाट्सअप आया की राखी बांध ली, सबको राखी बहुत अच्छी लगी। बहुत गुस्सा आया। ऐसा भी क्या की मुफ्त के फोन से दो घड़ी बात करने का भी समय नहीं।
फिर सोचा अगले साल राखी भी व्हाट्सअप पर ही भेज दूँगी। जिस तरह का चलन आजकल चल रहा हैं, तो ऐसा करने में कोई ताज्जुब भी नहीं।
वाह भई!! कितनी बनावटी दुनिया मे जी रहे है हम। जहाँ तकनीक ने हमारी दूरियों को तो मिटा दिया, लेकिन भावनाओं को कम कर दिया।
मुझे आज भी याद है, मेरे देवर की शादी। जो कि महज़ 7 साल पहले हुई थी। आस पास 100 किलोमीटर क्षेत्रफल तक सभी रिश्तेदारों को व्यक्तिगत निमंत्रण दिया गया था। जो दूर थे, उन्हें दो तीन बार फ़ोन किया गया था, महीने भर पहले ही।यही नही रोज़ सुबह शाम घर का एक सदस्य ,पड़ोस के 10 घर मे व्यक्तिगत रूप से बुलावा देने जाता, गीत इत्यादि छोटे कार्यक्रमो के लिए भी। हफ़्ते भर तक खूब रौनक रहती थी।
अब ना तो वैसे मेजबान है ना ही वैसे मेहमान।। किसी के पास समय नहीं।आमंत्रण, बधाई सब ऑनलाइन भेज दिया जाता हैं। हम भौतिक रूप से पहले से अधिक सम्पन्न तो हो गए लेकिन आत्मिक रूप से कमज़ोर।
नेहा सूरज बिनानी "शिल्पी"
मुम्बई
9619050255
नोट : आपसे सहृदय सादर विनम्र अनुरोध है कि, आपके प्रकाशन पश्चात लिंक / पीडीएफ प्रेषित कराने का विनम्र कष्ट अवश्य करें, ताकि मूल प्रति संग्रहित की जा सके।
सादर धन्यवाद।
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