Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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रोटियाँ

 
रोटियाँ   (नज़्म ) 

इंसान को इंसान बनाती हैं रोटियाँ
इंसान से इंसान लड़ाती हैं रोटियाँ

पहचान के सौ रंग जहां भर के देखकर,
अनजान से भी अश़्क छिपाती हैं रोटियाँ l

उम्मीद पे जब आस भटकती है दरबदर, 
तब शाम को दो चार कमाती हैं रोटियाँ l

कमज़ोर के हालात जवानी को घूरकर, 
बोली सरे बाज़ार लगाती हैं रोटियाँ l

तारीख़ में वो शख़्स कहाँ पर है खोजिए, 
ख़ामोश जिसको खुश़्क बताती हैं रोटियाँ l

पैग़ाम हो आगाज़ दिवाने का इश़्किया, 
अंजाम फिर नायाब दिखाती हैं रोटियाँ l

क़ाबिल वही जांबाज़ डरा जो भी वक़्त से, 
उसको सदा ही पास बुलाती हैं रोटियाँ l


नेतराम भारती
गाज़ियाबाद उत्तर प्रदेश 
स्वरचित एवं मौलिक 
9871579114

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