रोटियाँ (नज़्म )
इंसान को इंसान बनाती हैं रोटियाँ
इंसान से इंसान लड़ाती हैं रोटियाँ
पहचान के सौ रंग जहां भर के देखकर,
अनजान से भी अश़्क छिपाती हैं रोटियाँ l
उम्मीद पे जब आस भटकती है दरबदर,
तब शाम को दो चार कमाती हैं रोटियाँ l
कमज़ोर के हालात जवानी को घूरकर,
बोली सरे बाज़ार लगाती हैं रोटियाँ l
तारीख़ में वो शख़्स कहाँ पर है खोजिए,
ख़ामोश जिसको खुश़्क बताती हैं रोटियाँ l
पैग़ाम हो आगाज़ दिवाने का इश़्किया,
अंजाम फिर नायाब दिखाती हैं रोटियाँ l
क़ाबिल वही जांबाज़ डरा जो भी वक़्त से,
उसको सदा ही पास बुलाती हैं रोटियाँ l
नेतराम भारती
गाज़ियाबाद उत्तर प्रदेश
स्वरचित एवं मौलिक
9871579114
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