घर से मस्जिद है बहुत दूर, चलो यूँ कर लें,
किसी रोते हुए बच्चे को हँसाया जाये । ------ निदा फ़ाज़ली
मिट्टी का जिस्म लेकर चले हो तो सोच लो,
स रास्ते में एक समंदर भी आयेगा । ------- सलीम शाहिद
कुछ ढेर राख के हैं, कुछ अधजली सी लकड़ी,
आया था एक मुसाफ़िर सराये- जिंदगी में । ----- ’ज़मील’ मजहरी
तेरी सूरत से किसी की नहीं मिलती सूरत,
हम जहाँ में तेरी तस्वीर लिये फ़िरते हैं । ------ ’नासिख’
"इंतज़ार "
कह दिया "इंतज़ार करना कल तक के लिए "
टाल देंगे हम भी मरना कल तक के लिए....
समेट लेगा ख़त उनका आते ही अपने आप मे ,
पड़ेगा हमें सिर्फ़ बिखरना कल तक के लिए .... Surender Kumar "Abhinn"
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