दूर रह कर भी ना तेरी याद बिसराई गई,
सांस की हर लय से तेरी आरज़ू गायी गई,
तंज़,फ़िकरे और तोहमत,फिर मेरी दीवानगी,
किन बहानों से तबीयत राह पे लाई गयी,
सी लिए लब हमने तेरी आबरू के वास्ते,
दूर तक फिर भी मेरे दिलबर की रुसवाई गयी,
एक मेरा इक़रार-ए-उल्फ़त इस जहाँ में जुर्म था,
पर तेरी दिलकश कहानी बारहा गाई गयी,
जाने कैसे लोग जीते हैं तन्हा ये ज़िंदगी,
महफ़िलों मे रह के भी मेरी ना तन्हाई गयी,
अब किसे इल्ज़ाम दें किसकी खता बोले निदा,
मेरे दिल की कब्र मेरे हाथ खुद्वायी गयी,
---------------------------------------निदा...........
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