Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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कर्म की प्रार्थना

 

मनुष्य जीवन का लक्ष्य ही कर्म करना होता है |
कर्म के बिना ना तो मनुष्य की पहचान है ना ही जिंदगी में कोई लक्ष्य है |

तो जो व्यक्ति अपने काम को या अपने अच्छे कर्मों की प्रार्थना करता है |
तो वो जीवन में कभी गलत रश्ते पर नहीं जाता |

एक लड़की के लिए उसके घर की ज़िम्मेदारी उसका कर्म है |
एक अध्यापक के लिए बच्चो को पढ़ना उसका कर्म है |

और इसी तरह हार व्यक्ति को जीवन में कर्म करना होता है |
कर्म की प्रार्थना का अर्थ है अपने भगवान की प्रार्थना करना क्योंकि स्वयम प्रभु ! ने कहा है की निष्कर्म व्यक्ति का जीना व्यर्थ है |

तो अपने कर्म को ही अपना भगवान मानो |
जो दिल से पूरे विश्वास और निस्वार्थ हो कर अपने कर्मों की प्रार्थना करता है |

वही व्यक्ति भगवान का सबसे बड़ा भक्त होता है |

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