रिश्तों की अनमोल डोर
ज़िन्दगी में अक्सर हम अपने जीवन को बनाने के लिए अपने आप को बहुत दूर ले जाते हैं ,हमारे अपनों से,क्यूँकि कभी-कभी हमारे मकसद इतने ज़्यादा होतेहैं कि हमारा वक़्त सिर्फ हमारा काम ही ले लेता है |
मगर,क्यों हम अपने कर्म का दूसरा हिस्सा त्याग देते है ? कर्म से अपने करियर को आगे ले जाना नहीं होता,कर्म अपने रिश्तों के प्रति ज़िम्मेदारी निभाना भी होता है | माँ का रिश्ता,पिता का रिश्ता,बच्चों का रिश्ता ये ऐसे अनमोल बंधन हैं, जिसे भगवान हमारी ज़िन्दगी में भेजा है, सिर्फ प्यार को दोगुना करने के लिए,पर आज जब दुनिया में हम एक दूसरे की तरफ देखते हैं ,तो दुःख होता है यह बात जान कर कि इंसान बाहर तो हज़ारों रिश्ते बना लेता है,लेकिन क्यों अपने ही जनम से जुड़े रिश्ते उसे चुभते हैं ? क्यों माँ का एक फ़ोन भी चेहरे पर मुश्किल ले आता है,लेकिन वही एक बेगाने दोस्त का फ़ोन ख़ुशी | जवाब बहुत सरल है------
क्यूँकि पारिवारिक रिश्ते जिम्मेदारीमाँगते है,और बाहरी रिश्ते कोई बंधन नहीं बनाते | लेकिन अगर जिम्मेदारी से माँ-बाप भाग जायें तो क्या हम अपनी ज़िन्दगी जीने के काबिल रहेंगे ? औलाद का कर्तव्य,इंसान का फ़र्ज़ एक मात्र पैसा कमाना यह करियर बनाना नहीं,बल्कि रिश्तों के लिए समय देना भी है | जब एक इंसान अपने रिश्ते जो ईश्वर ने उसे दिए हैं , उसे इज़्ज़त,प्यार और वक़्त देता है तो असल ज़िन्दगी में वही परिभषा है उसकी कामयाबी और अच्छाई की | रिश्तों का महत्व समझना आसान नहीं लेकिन आज अगर हम सफलता का पूर्ण रूप से मतलब समझें तो एक ही है---- रिश्तों की कमाई और खुशियाँ |
निकिता बेदी
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