Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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मेरे सिरहाने मचल उठा

 

 

मेरे सिरहाने मचल उठा,
तेरा ख़त रात जल उठा।
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थाम ऊँगली मेरी चल पड़ा,
कहीं रुका और कहीं अड़ा,
जवाब में मेरी नज़र झुकी,
सवाल सा जब हुआ खड़ा।
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पहले हर्फ़ पे नज़र गयी,
तो सांस मेरी थम गयी,
एक तडपती वो नब्ज़ थी,
धडकनों से जो कट गयी।
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मै ज़रा ही था आगे बढ़ा,
मेरे हाथ से वो गिर पड़ा,
कुछ टूटने की आहट से
यक_ब_यक में उठ पड़ा।
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टूटा ख़्वाब, मै रो पड़ा
तकिये में अश्क़ ढल पड़ा,
आंसू नहीं वो अंगार था,
जिस्म सारा जल पड़ा।
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कुछ ही देर में धुआं छटा,
फिर लडखडा के मै उठा,
याद का जाला हटा के,
दिल ज़ार ज़ार छलक उठा।
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आबे-अश्क़ से वो जी उठा
मेरे सिरहाने मचल उठा,
तेरा ख़त आप जल उठा।
तेरा ख़त आप जल उठा।
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Nilesh Shevgaonkar

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