Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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पाँओं में नाकामियों के छाले है

 

 

पाँओं में नाकामियों के छाले है,
जाने कैसे ख़ुदको हम सम्हाले है।
...
अभी जो हमदर्दी जता के लौटा है,
हर नुक्कड़ पे पगड़ी वही उछाले है।
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शायद वो ऐ वै ही मुस्कुराया था,
हमने भी क्या कुछ माने निकाले है।
...
क़िस्मत के खेल में मिरा नाम ही नहीं,
ख़ुदाया फिर क्यूँ वो पर्ची उछाले है।
...
ये घर मुझ को अपना घर नहीं लगता,
दीवार पे बस जाले ही जाले है।
...
इसी उम्मीद पे चला चलता हूँ 'नूर',
इक मोड़ मुड के ज़ीस्त में उजाले है।

 

 

 

निलेश शेवगांवकर "नूर"

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