आसमाँ उसको ऊपर दो चाहिए ।।
और बस उड़ने को पर दो चाहिए ।।
एक में नफरत , मुहब्बत एक में ।।
जिस्म में मेरे जिगर दो चाहिए ।।
ख्वाहिशों के दायरे यूँ बढ़ गए ।।
आज रहने को भी घर दो चाहिए ।।
ये जहन पे बोझ बढ़ता सोच का ।।
अब धड़ों पे सबको सर दो चाहिए ।।
इक कमाने की ,दिखाने की अलग ।।
जिंदगी को अब डगर दो चाहिए ।।
इक ख़ुदा का दूसरा ईमान का ।।
आदमी को बस ये डर दो चाहिए ।।
बह्र में अच्छे ख़यालों को लिखो ।।
शायरी में , ये , हुनर दो चाहिए ।।
मुफ़्त में ले जा ,कहा उसने मुझे ।।
मुफ़्त में मुझको , मगर दो चाहिए ।।
Narender Sehrawat
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