Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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रोना हज़ार रोते रहे देश काल के

 

रोना हज़ार रोते रहे देश काल के

फेंके न आस्तीं के संपोले निकाल के


चारों तरफ़ बिछी है सियासत की गंदगी

यारों कदम बढ़ाना जरा देख भाल के


भेजा वही है, सोच वही, आदतें वही

बदले हैं कलर लल्ला ने सिर्फ बाल के



मिलते ही सुकन्या ने हाइ गाइ! यूँ कहा

आसार नज़र आने लगे चाल ढाल के


लहसुन पेयाज़ मसाले का त्याग देखिये

साहब ने मछली खाई तो वो भी उबाल के


कुछ भी न दिया हो विकास ने यहाँ मगर

झुरऊ मज़े लेते हैं सरे-शाम मॉल के


इस दौर फर्ज-ओ-फन की खैर बात क्या करें

ईमान खरीदे गए सिक्के उछाल के

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