आओ, हमारे रिश्तों के
हमारे आत्मिक सम्बन्ध के
अहसासों के तानेबाने से
जीवन की ऐसी चदरियाँ
बुनते रहें मिलकर हम !
आओ, अपने रिश्ते की ऊंचाई और
गहराई को भी नांप ले हमदोनों
हमारे दिल की धड़कनों को सुनें
अपनी आँखों से सिर्फ देखना नहीं
अपनी पैनी नज़रों को पवित्रता के
गेरुए रंग में रंग लें जहाँ से हमें
वैराग्य नहीं, समदृष्टि की दिव्यता मिले
प्रेम शाश्वत है, हमने उसके मूल्य को
न परखा है न आत्मसात किया कभी
प्रेम का कोई रंग नहीं, नाम भी नहीं
प्रेम पानी जैसा है, जिसमें घुलमिल जाएं
उसी रूप में ढल जाता है और न जाने
तुम उसे वासना कहो या शुद्ध प्रेम !
सबकुछ निर्भर है तुम्हारे अस्तित्व पर
तुम्हारी सोच पर और तुम्हारे अपने
संस्कार पर ... जिसे लोग देख रहे हैं
पल पल...!
*
।। पकज त्रिवेदी ।।
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