औरत
जूझती है, लड़ती है
अपने परिवार के लिए
सम्पूर्ण समर्पित होकर
औरत
दुःख झेल लेती है
मौन रहकर और
ख़याल भी रखती है
औरत
माँ, बहन या बेटी है
सम्मान देती है सभी को
उनको कोई नहीं सुनता
औरत
मौन रहती है, स्वाभाव से
बोलती है सिर्फ हितकारी
मगर उनकी दरकार नहीं
औरत
मर्द के लिए पूरी दुनिया से
लड़ सकती है मगर उनकी
रखवाली में मर्द कमजोर क्यूँ?
औरत
जन्म लेने से पहले मरती है
जन्म लिया तो भी हर दिन
शोषित, पीड़ित और भोग्या !
औरत
सहती है मगर जिस दिन
जिस्म से उठकर शक्ति बन गई
मर्द के देह की विकृति जला देगी
*
पंकज त्रिवेदी
06 अगस्त 2018
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