पंकज त्रिवेदी
बड़ी खामोशी से पाला है, आशियाना हमने |
ग़म के सायों से लदे पेड़, झुके है आँगन में ||
हमारी फ़ितरत ही कहाँ, ज़माने से ख़फा होना |
अँगारे से खेलना, मुस्कुराना, अच्छा भी नहीं ||
घर तुम्हारे भी जल रहे हैं, देखो लोग सहमे हुएँ |
दिल की गहराई से दबी, टीस एक सुनाई देगी ||
हसीं आती है हमें, भरोसे की बात पर |
खंजर है तुम्हारे हाथ में, और गोली है पीठ में ||
अब गांधी नहीं रहे, जो अहिंसा की करें बात |
आज़ाद है हम कहते हैं, फिर भी है क्यूं गुलाम !!
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