Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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बड़ी खामोशी से पाला है, आशियाना हमने

 
पंकज त्रिवेदी 
बड़ी खामोशी से पाला है,  आशियाना हमने |
ग़म के सायों से लदे पेड़, झुके है आँगन में ||
हमारी फ़ितरत ही कहाँ,  ज़माने से ख़फा होना |
अँगारे से खेलना,  मुस्कुराना, अच्छा भी नहीं ||
घर तुम्हारे भी जल रहे हैं, देखो लोग सहमे हुएँ |
दिल की गहराई से दबी, टीस एक सुनाई देगी ||
हसीं आती है हमें,  भरोसे की बात पर |
खंजर है तुम्हारे हाथ में,  और गोली है पीठ में ||
अब गांधी नहीं रहे,  जो अहिंसा की करें बात |
आज़ाद  है हम कहते हैं, फिर भी है क्यूं गुलाम !!

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