Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
Administrator

बेटी को लिए ...

 


बारिश ने दरख़्त को भिगो दिया 
पौधा बोया था हमने कुछ साल पहले 
बेटी का जन्म हुआ था उन दिनों में 
साइकिल थी और हम थे - तीन 
मैं चलाता था और वो पीछे बैठती 
बेटी को लिए ...
एक लोहे का पिंजर बनवाया था 
पौधे को बचाने के लिए हमने 
प्रतिदिन सुबह जाने से पहले और 
शाम को घर आकर मैं उसे देखता 
कोंपलें और पत्ते... बड़ा खुश रहता
बेटी की पढाई शुरू हुई और इधर 
पौधा भी परिपक्व बनने लगा 
आज बेटी से भी बड़ा लगता है वो 
मगर कुछ दिनों से एक विचार है 
यूंही चल रहा है मन ही मन ... 
पौधा अब पेड़ बन गया है, रहेगा 
यहीं मेरे पास, आँगन में और... 
बेटी...? कितने दिन रहेगी अब वो?
- पंकज त्रिवेदी (7 August 2014)    


Powered by Froala Editor

LEAVE A REPLY
हर उत्सव के अवसर पर उपयुक्त रचनाएँ