चाहे जितना भी सच्चा कर लो इश्क तुम
कोई नहीं पा सकता यहाँ इश्क-ए-कामिल
जब पूर्णता मिल जाएँ तो न होगी तन्हाई
तन्हाई तो देंगी तुम्हें खुदा-ए-इश्क कामिल
।। पंकज त्रिवेदी ।।
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(कामिल=पूर्णता)
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किसीने इसका अर्थ पूछा तो मेरी समझ के अनुसार मैंने उसे कहा कि इस अर्थ में मैंने चार लाइन लिखी थी.........
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हम चाहें जितना भी मानते है कि दिल से किसीको सच्चा प्यार करते हैं... मगर प्यार करने वाले कभी मिल नहीं पातें, अगर मिल भी जाएं तो ज़माना उसे उसी प्यार की ऊँचाई तक जीने नहीं देते.......
ऐसे में अलग होने की परिस्थिति में वियोग या तन्हाई उस इन्सान को प्यार के माध्यम से आध्यात्मिक दिशा में ले जाता है... वो अकेला जीना चाहता है या तन्हाई में रहना पसंद करेगा... लोगों से मिलना पसंद नहीं होगा और उसी में से वो खुदा / ईश्वर की ओर आगे बढ़ता है और....... उसी के प्यार में वो पूर्णता को पा लेता है
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