चन्द रातों से नींद बहुत आती है
लगता है यही तू कहीं आसपास है
चैन कम मिल पाता आपाधापी में
सुकून-ए-मोहब्बत का दीदार तू है
ए परवर दिगार शुक्रिया तेरा कहूं मैं
तू नहीं तो ये ज़िंदगी क्या ख़ाक है?
किसीके आँसूं देखकर पिघलना नहीं
आँसूं बहने से पहले समझ दरकार है
किसी के वास्ते जलने वाले खूब मिलें
किसी के स्वीकार में खुशी मिलती है
ठहर जाओ सोचो ज़रा वक्त गुज़रा नहीं
आज इस पल में तेरा सूर्य तपने लगा है
- पंकज त्रिवेदी
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