Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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"दरख़्त"

 
एक काव्य रचना"की श्रृंखला को आगे बढाने के क्रम में प्रस्तुत हैं आदरणीय शेफालिका वर्मा जी ने मेरा नाम मनोनीत किया था, मैं उनका ह्रदय से आभारी हूँ | मेरी रचना "दरख़्त"---
"एक काव्य रचना"  के अंतर्गत लगा रहा हूँ |  साथ ही प्रतिदिन एक नाम जोड़ेंगे ।  आज हम आदरनीय Ritu Sharma  का नाम दे रहा हूँ  |
मैं दरख़्त हूँ - पंकज त्रिवेदी 
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मैं दरख़्त हूँ
आप चाहें नाम भले ही कोइ भी दे दें
चाहें तो नीम, बरगद, पलाश या फिर 
पारिजातक !
मैं दरख़्त हूँ 
क्यूंकि मैं जानता हूँ मुझे एक ही जगह 
खड़े रहकर अपने कर्तव्य को निभाना है 
इमान से ! 
मैं दरख़्त हूँ 
मैं जानता हूँ कि मुझे किसी से आस नहीं 
न रखनी है, जो बन पड़े उनके लिए करना 
लगन से ! 
मैं दरख़्त हूँ 
मेरे अंदर की कडवाहट होते हुए भी मुझे 
उसी कडवाहट को औषध बनकर रहना 
आपके लिए !
मैं दरख़्त हूँ 
मेरा शरीर बड़ा और पत्ते भी फिर भी मुझे 
आपको वो ठंडक देनी है जहाँ सुख मिले 
और सुकून ! 
मैं दरख़्त हूँ 
कड़ी धुप में भी अडिग खड़े रहकर मुझे 
कुदरत के वैभव को आपकी आँखों में मुझे 
बसाना है ! 
मैं दरख़्त हूँ 
देववृक्ष बनकर आपके आँगन में मुझे 
वो सुगंध फैलानी है जो आपके मन को 
शांति दें ! 
हाँ, मैं दरख़्त हूँ 
मेरा कर्तव्य है कि अंतिम समय तक मुझे 
आपको साथ देना हैं चाहें जलाकर बनाओ 
दो रोटियाँ !
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