एक काव्य रचना"की श्रृंखला को आगे बढाने के क्रम में प्रस्तुत हैं आदरणीय शेफालिका वर्मा जी ने मेरा नाम मनोनीत किया था, मैं उनका ह्रदय से आभारी हूँ | मेरी रचना "दरख़्त"---
"एक काव्य रचना" के अंतर्गत लगा रहा हूँ | साथ ही प्रतिदिन एक नाम जोड़ेंगे । आज हम आदरनीय Ritu Sharma का नाम दे रहा हूँ |
मैं दरख़्त हूँ - पंकज त्रिवेदी
*****
मैं दरख़्त हूँ
आप चाहें नाम भले ही कोइ भी दे दें
चाहें तो नीम, बरगद, पलाश या फिर
पारिजातक !
मैं दरख़्त हूँ
क्यूंकि मैं जानता हूँ मुझे एक ही जगह
खड़े रहकर अपने कर्तव्य को निभाना है
इमान से !
मैं दरख़्त हूँ
मैं जानता हूँ कि मुझे किसी से आस नहीं
न रखनी है, जो बन पड़े उनके लिए करना
लगन से !
मैं दरख़्त हूँ
मेरे अंदर की कडवाहट होते हुए भी मुझे
उसी कडवाहट को औषध बनकर रहना
आपके लिए !
मैं दरख़्त हूँ
मेरा शरीर बड़ा और पत्ते भी फिर भी मुझे
आपको वो ठंडक देनी है जहाँ सुख मिले
और सुकून !
मैं दरख़्त हूँ
कड़ी धुप में भी अडिग खड़े रहकर मुझे
कुदरत के वैभव को आपकी आँखों में मुझे
बसाना है !
मैं दरख़्त हूँ
देववृक्ष बनकर आपके आँगन में मुझे
वो सुगंध फैलानी है जो आपके मन को
शांति दें !
हाँ, मैं दरख़्त हूँ
मेरा कर्तव्य है कि अंतिम समय तक मुझे
आपको साथ देना हैं चाहें जलाकर बनाओ
दो रोटियाँ !
* * *
Powered by Froala Editor
LEAVE A REPLY