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देखो न !

 

Pankaj Trivedi


देखो न !
दोपहर की कड़ी धुप में भी 
पेड़ों के पत्ते तो झड गए थे 
मगर हरसिंगार पे आजकल 
कुछ नई कोंपलें और पत्ते भी !
देखो न ! 
ऐसा लगता है जैसे ज़िंदगी की 
धुप में आती जाती मुश्किलों में 
फिर एक बार नई कोंपलें और 
कुछ हरे से पत्ते दिखाई दिए है ! 
सुनती हो ?
अब फिर से हम एक दूजे का 
हाथ थामकर चलें और भूल जाएं 
वो सारी ग़लतफ़हमियाँ और 
नई कोंपलें, पत्ते और प्यार ! 
(कविता और तसवीर)
पंकज त्रिवेदी

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