हर शाम तेरा इंतजार रहता है
खिड़कियाँ भी तुम्हें तरसती है
दरवाजे पे लगाया है लाभ-शुभ
तेरे लिए आँगन सजा रहता है
घूँघरू की भनक से खड़े कान है
होठों पे मुस्कुराती शर्म जवाँ है
आओ अब तुम्ही का इंतजार है
कहूं क्या आगे तू समझदार है
- पंकज त्रिवेदी
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