Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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जीवन अस्तव्यस्त है

 
जीवन अस्तव्यस्त है 
तुमसे संवाद नहीं कर पा रहा मैं!
मैं जानता हूँ -
तुम हो कि कभी शिकायत नहीं करोगे 
मौसम बदल रहा है, पतझड़ कब आया 
कब गया और नई कोंपलें - पत्ते ने तुम्हें 
भीतर - बाहर से हरे भावों से भर दिया है
तुम्हें तो पता है न कि मैं जबतक 
तुमसे संवाद न करूँ, तुम्हें जी भर के न देखूँ 
और कहीं जाते समय मन से विदा न लूँ 
चैन नहीं होता मुझे और तुम्हें भी तो ! 
आपातकालीन समय में इंसान मजबूर है
भीतर की सोच और जिस्म का बदलाव भी है 
ऐसे में तुम्हारे पास रहकर तुम्हारे लिए जीना है  
नहीं चाहता कि प्रकृति कभी किसी भी 
आपातकालीन समस्याओं के आगे झुक जाएँ !
तुम्हारे प्रति आसक्ति कोई कहें तो कहें 
मगर तुझमें मैंने अपने ईश्वर का दर्शन किया है 
महसूस किया है, अपने दुःख-दर्द को बांटकर
तुम्हारे बगैर मेरे आँगन की कल्पना भी नहीं 
मेरे पिताजी को भी प्यारे थे तुम और मेरे लिए 
उन्हीं का रूप हो तुम हे पारिजात !  
@
पंकज त्रिवेदी

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