Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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कभी मेरी गुस्ताखियों को देखने की आदत छोड देती

 
कभी मेरी गुस्ताखियों को देखने की आदत छोड देती  
दिल के जज्बात को समझती तो ज़िंदगी रंगीन होती 
*
क्या खबर थी कि दिल इतना भी किसी पे कुर्बां होगा
क्या खबर थी कि मामला इस कदर संगीन भी होगा  
*
अल्फाज़ की कही सबने सुनी, अर्थ के निकले अनर्थ 
जो दिल की पढ़े खामोशी वोही मानें लफ्ज़ को व्यर्थ 
*
बेबाक बोलता हूँ तो कहती हो, बस भी करो 
चूप हो जाऊं मैं तो कहती हो, बोलते नहीं हो 
*
पंकज त्रिवेदी

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