कभी मेरी गुस्ताखियों को देखने की आदत छोड देती
दिल के जज्बात को समझती तो ज़िंदगी रंगीन होती
*
क्या खबर थी कि दिल इतना भी किसी पे कुर्बां होगा
क्या खबर थी कि मामला इस कदर संगीन भी होगा
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अल्फाज़ की कही सबने सुनी, अर्थ के निकले अनर्थ
जो दिल की पढ़े खामोशी वोही मानें लफ्ज़ को व्यर्थ
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बेबाक बोलता हूँ तो कहती हो, बस भी करो
चूप हो जाऊं मैं तो कहती हो, बोलते नहीं हो
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पंकज त्रिवेदी
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