Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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कई प्रश्नो को जन्म देता

 


suraj ka


सप्तरंगी कवरपर उकरे इन्द्रधनुषी उन्वान के शब्द "सूरज का सातवाँ जन्म"! श्री सुरंजन जी का यह काव्य संग्रह निशब्दता के वातावरण में कई प्रश्नो को जन्म देता रहा.उन्हीं के उतर ढूँढने के प्रयास में बाहर के उजालों के किवाड़ अंदर से बंद कर के मैं तीरगी की गहराइयों में तलाशती रहीं,  और कवि सुरंजन जी के शब्दों की आहटों को,उनकी पदचाप को,उन ख़ामोशियों को सुनने की कोशिश में ठिठक कर रुक गई एक स्थान पर,लगा मेरे हर प्रश्न का उत्तर,मेरे जीवन की तलाश,वहीं पूरी हुई हो. सत्य को उजगारित करती अभिव्यक्ति कविता के रूप में"गुम हुई आत्मा का पता दो"जैसे ललकार रहीं हो,अपने साथ मानवता के अनंत काफि़ले लेकर एक मत,एक सुर में कह रहीं हो सुरंजन जी के आत्मीयता भरे भावपूर्ण अभिव्यक्ति के रूप में:

जो अस भी / शरीर में पोर -पोर में /रेशा -रेशा में /

इस तरहा टहल रही है / जैसे वह ताक में हो / सदियों से, /मुझे

छू लेने के लिए... /और एक में हू कि

कविता की तीसरी आँख लिये----

अद् भुत सोच के शिखर पर निश्बदता की झन्कार!!

एक जिया गया जीवन जिसमें मानवता धड़कती है बिंब बनकर सामने आया,जहाँ कवि के मन में उपजते भाव शब्दों में ढलकर मन को उल्लासित और आनंदित करते हैं.शायद शिल्प की स्वच्छता और शैली की नवीनता इस संकलन में पाई गई कविताओं की विशेषता है."वरदान" नामक कविता में उन्हीं की जुबानी समस्त जीवन का एक ऐलान........
जिंदगी / अब वही मेरा भविष्य/ और वर्तमान भी.

कविता को जिस साँचे में ढालकर सुरंजन जी ने प्रस्तुतीकरण किया है उससे तो यही आभास होता है कि उनकी ज़िंदगी में कविता का दख़ल दीर्घ काल से है और निरंतर हर नये मोड़ पर नई रचना उनके व्यक्तित्व,उनके अंतरमन के मंथन की उपज से पाठको को परिचित करा रहीं है . नामावर सिन्ह जी का कथन "सच्चा कवि हर कविता के साथ मरता है और जन्म लेता है" सच के सामने आईना बनकर आया है और कवि मन उस सत्य का ज़ामिन है. उन्हीं के शब्दो में सुनते हैं उनके अपने परिचय की ललकार...

तुम्हारा,आने वाला कल मैं हूँ
मेरे साथ चलते रहो
क्योंकि मैं पंचम स्वर हूँ!!

मार्गदर्शक्ता के पथ पर एक जगह ठिठक कर उनका मन ज़िंदगी की भूलभुलैया में कुछ देर के लिये अटक रहा है,भटक रहा है और जानते हुए भी उस अग्यानता की दल दल से निकल पाने में असफ़लता को प्रकट करते हुए कवि मन कह उठता है...
लड़की
एक मुगत्रष्णा
जैसे अँधा कुआँ---!!

चंद शब्दों में बड़ी बात कह दी जीवन की हक़ीक़त को बयान करते हुए.एक निचोड़ सामने है, स्रष्टि की रचना का आधार लड़की,वही अंत भी,कूप अंधेरों का एक मात्र बिंदु"अँधा कुवाँ"जो जीवन के अंत का प्रतीक है. सहज शब्दावली,प्रभावशाली शैली,रोचक प्रसंग!! इतिहास के इस मोड़ पे अपने जीवन के अनेक रंगो से उत्पन होता हुआ "सूरज का सातवाँ जन्म" अपनी पूर्ण सार्थकता के साथ हमारे सामने है. समवेगात्मक विचारों को कहने के लिए उपयुक्त शब्दावली की आवश्यकता पड़ती है,जो श्री सुरंजन जी की रचनात्मक अनुभूतियों में ज़ाहिर है.एसी ही शैली जब जीवन के अनुभवों का शब्दों से सिंगार करती हैतो रचना जीवंत सी लगती है,शायदउस का ठोस आधार हर इन्सान का अपना जिया गया अनुभव होता है. किसी ने खूब कहा है "रचनाकार अपनी रचना से बहुत देर तक दूर नहीं रह पाता" उनके मन की तलाश सिर्फ़ उनकी नहीं,सारी मानवता की अमानत है,हम सब उसी पथ के पाथेय हैं.

सड़क...जो हम दोनों तक जाती है
और उसे ही तलाश रहा हूँ.

श्री सुरंजन जी की जज़्बात का,उनके अहसासात का यह काव्यात्क सिलसिला उनकी क़लम से धारावाहित होता हुआ मानव मन के तट पर दस्तक देने में बखूबी कामयाब रहा है.सुधी पाठकों के उत्साह को दिशा देती हुई यह पुस्तक पठनीय है.संकलन के लिए मेरी हार्दिक शुभकामनाएं



devi nagrani


समीक्षक: देवी नागरानी,९ कार्नर व्यू सोसाइटी,बाँद्रा,मुंबई ४००५०,फोन ९९८६७८५५७५१

काव्य संग्रहः सूरज का सातवाँ जन्म,शाइरः सुरंजन,मूल्यः रु. १५०,प्रष्ठः ६०,प्रकाशकः मगध प्रकाशन



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