खामोशी ने आकर दस्तक दी
मैंने दरवाज़ा खोला तो मुस्कुराई
मुझे आश्चर्य हुआ...
उन्हों ने मुझे पूछा;
ऐसा भी क्या हुआ कि मेरे आने से
तुम्हें आश्चर्य हो रहा है ?
मैंने कहा; तुम खामोशी हो, और
मुस्कुराती भी हो.... !
उसने कहा; क्या खामोशी को
मुस्कुराने का भी अधिकार नहीं?
मैं इसलिए मुस्कुराई कि -
आज मुझे यह महसूस हुआ कि -
तुम ही मेरे हो... बिलकुल मेरे जैसे !
खामोश !!
*
काॅपीराइट @ || पंकज त्रिवेदी ||
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