Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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खामोशी ने आकर दस्तक दी

 
खामोशी ने आकर दस्तक दी
मैंने दरवाज़ा खोला तो मुस्कुराई 
मुझे आश्चर्य हुआ... 
उन्हों ने मुझे पूछा; 
ऐसा भी क्या हुआ कि मेरे आने से 
तुम्हें आश्चर्य हो रहा है ?
मैंने कहा; तुम खामोशी हो, और 
मुस्कुराती भी हो.... ! 
उसने कहा; क्या खामोशी को 
मुस्कुराने का भी अधिकार नहीं?
मैं इसलिए मुस्कुराई कि - 
आज मुझे यह महसूस हुआ कि - 
तुम ही मेरे हो... बिलकुल मेरे जैसे ! 
खामोश  !! 
*
काॅपीराइट @ || पंकज त्रिवेदी ||

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