कुछ आँखें है
जो हमेशा मुझे
देखती रहती है
कभी खुद को
तलाशती है तो
कभी मेरे सपनों को
पढ़ने को बेचैन
कभी लगें कि माँ
देख रही है मुझे
कभी तुम चुपके से
दोस्तों की चार आँखें
ये आँखें कुछ भी देखें
मेरी आँखों में आँखें डालकर
या चोरी से देख लें मुझे
यही आँखें है जो जादू करती है
ये जादू से आयना बन जाती है
जो देखने आते है
खुद उन्हें ही दिखाती है ये आँखें
वो भूल जाते किसी को देखना ठीक नहीं
मगर ये आँखें
उनकी हो या मेरी, देख लेती है
जो देखना चाहिए और....
यहीं से ये आँखें बदल जाती है
और हमें ही दिखाती है अपना चेहरा
खुद आँखों से आइना बनकर !
*
पंकज त्रिवेदी
03 अगस्त 2018
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