कुछ लम्हें आते हैं
तुम्हारी याद लिए
दस्तक ही देते हैं
उन मासूमियत के
वो दिन याद आते हैं
पुनर्जन्म हुआ हो जैसे
तुमने फिर से आज
दस्तक दे ही दी है
आकर्षण मुग्धभाव से
परम प्रेम में रम्य हो
इंसान हूँ न मैं भी
कभी बच्चे सी हरकत
कभी अनाराधार प्रेम
मर्यादाओं की गठरी
तुम ही खोल देती हो
स्वीकार लेती जस की तस
*
पंकज त्रिवेदी
16 फ़रवरी 2020
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