Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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मैं ताज्जुब में हूँ

 


मेरे निर्बंध व्यक्तित्व की मुखरता को 
तुमने कैसे स्वीकार कर लिया है 
मैं ताज्जुब में हूँ !
मेरी भावुकता बच्चों सी है और प्यार 
पाने की ललक कभी मर्द से बच्चे तक 
मैं ताज्जुब में हूँ !
एक पल में मेरी पसंद और नापसंद में 
झूलता रहता हूँ मैं और तुम सहती हो मुझे 
मैं ताज्जुब में हूँ !
कभी तुम्हारे प्यार के उन्माद को अनदेखा 
या खुद ही में खोया हुआ मैं फिर भी तुम हो 
मैं ताज्जुब में हूँ !
हर कार्य में चौकसी फिर भी घर में ज़ीरो हूँ 
और तुम हो कि कैसे घर को घर बनाये रखती 
मैं ताज्जुब में हूँ !
मेरे हर शब्द में खुलता, खिलता हूँ मैं और तुम 
उसी अंदाज़ में ढल जाती हो मेरी खुशी के लिए 
मैं ताज्जुब में हूँ !
-पंकज त्रिवेदी


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