Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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मैंने अपने दर्दों से दोस्ती कर ली है

 


मैंने अपने दर्दों से दोस्ती कर ली है अब तो 
जानता हूँ वोही साथी है वो संगाथी अब तो 
कितनों ने आकर दरवाजे पे दस्तक दी होगी 
कुछ आएं, मिले, भूलते हुए चले गए अब तो
दीवारों से मकाँ बनता है घर हो नहीं सकता 
घर में भी कभी कभी मकाँ बन जाएं अब तो 
साँसों ने आज इस कदर दिल में सूई चुभा दी 
खुदा खुद ही दौड़ता मिलने को आया अब तो   
- पंकज त्रिवेदी


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