मेरी मुस्कराहट ! - पंकज त्रिवेदी
* * *
जब भी तुम्हारी
अपेक्षा अनुसार कुछ नहीं होता तब
तुम्हें एक पल में गुस्सा आ जाता है
और मेरा मौन !
वक्त गुज़रता है ...
तुम छटपटाहट से बेचैन होकर
भयानक गुस्से के बाद कुछ न होने के
बाद फूट फूटकर रोने लगती हो
और मेरा मौन !
जब भी तुम्हारी
समझदारी परों की तरह खुलने लगती है
खुद-ब-खुद अपनी गलतियाँ स्वीकार करती
और पूर्ण आत्मसमर्पण कर देती हो आकर
और मेरी शांत मुस्कराहट !
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