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नाम नहीं...!

 

Pankaj Trivedi


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नाम  नहीं...!   - पंकज त्रिवेदी  
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तुम्हारे चेहरे को मैं यहाँ  से  पढ़ सकता हूँ। तुमको मैंने दोस्त कहा। उम्र और विचार से भी हम समान- दोस्त हैं। तुम्हें  मेरे लिए सम्मान  है तो मुझे भी। हम एकदूजे को हम समजते है। जब  दोस्त  बनाया  तो not good, not bad ।
क्यूंकि- प्रत्येक  इंसान  चाहता  है कि पूरे परिवार के बावजूद कोई  ऐसा हो,  जिससे  हम सबकुछ कह सके खुले मन से। यह मानव  स्वभाव है। कोई इससे परे नहीं। अब तुम कहो, मै गलत हूँ ?
एहसासों के इस रिश्ते को मैंने भी स्वीकार किया है। जानता हूँ कि  हमदोनों किसी ऐसी डगर पर आये हैं, जहाँ पहुँचने हमारा मन भी  चाहता था। जो सबकुछ मिलकर भी अधूरा था। शायद वही सबकुछ  हम एकदूजे से पा रहे  हैं। हाँ शायद ऐसा ही है। इस संबंध का नाम नहीं, शरीर नहीं, मौजूदगी भी नहीं। फिर भी यह सब है हम दोनों  के  साथ।  इन सबके साथ ही हम मिलते है। और यही अहसास हमारे  दिल को - मन को अच्छा लगता है।
तुम्हारे पास सबकुछ है, फिर भी मेरी भी जगह है। अलग । शायद  तुम भी इसी तरह मेरे अंदर हो। तुम मुझसे जुदा नहीं हो, कहीं भी, कभी भी। 
इसलिए धड़कन में भी ताल बैठने लगी है  मेरे साथ। सच  कितना  अच्छा लगता है... है न?
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