पंछियों की चहचहाहटसुनते हुए मेरी सुबह जागती थी
आज तेरी पायल के मंजुल स्वर की ध्वनि
और खुलती आँखों से सूरज निकल आया
दिव्यता का उजास फ़ैल गया
तुम्हें सफ़ेद रंग पसंद है और कभी लाल
शांति और खुशियों का गुलाल
कितना कुछ है जो अनकहा सा रहा था
यही प्रकृति है, जो कभी शब्दों की मोहताज नहीं
मगर अपने रुप रंग से इस कदर निखरती है
जैसे आज सुबह में तुम !
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