प्रेमपथ पंकज त्रिवेदी * मैं जानता हूँ
तुम नहीं दौड़ सकोगी मेरे साथ
मेरा उत्साह, रोमांच और मेरी
शरारत...
तुम भले ही दूर रहो
मेरे प्यार में रही निर्दंभता,
निर्दोषता और निर्मलता
मैं चाहूँ तुम्हें मुग्धभावों से, पागल बनकर
प्रेमवश स्पर्शता तुम्हें !
तुम क्षोभवश
चाहती रहो मौन बनकर, धीरज से
कभी वात्सल्य की मूर्ति बनकर...
मार्ग हमारा एक ही, यही
प्रेमपथ...!
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