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रामकथा की पात्र कैकेयी

 

 

kaikai                        sneh

 

 

 

 

लेखक: स्नेह ठाकुर / विचार: देवी नागरानी

 

 

 


उपन्यास को परिपक्व मस्तिष्क के चिंतन की परिणीति माना जाता है। किसी विद्वान ने लिखा है नॉवेल इंसान के हक़ीक़ी जीवन की काल्पनिक कहानी है। यह इन्सान के जीवन की भीतरी और बाह्य मन की कशमकश का, उनके इर्द-गिर्द के माहौल और हालातों का सजीव चित्रण है। जीवन के गुनागूं हक़ीक़तों से रूबरू करना कराना तो एक नॉवेल नवीस की खूबी होती है, काल्पनिक होते हुए भी ये यथार्थ के बहुत करीब होतीं हैं। जीवन की सच्चाइयों के इज़हार का दस्तावेज़ है नॉवल।
मनोवैज्ञानिक विश्लेषण ने यह साबित कर दिया है कि हर इंसान में कुछ अच्छाइयां और कुछ बुराइयां जरूर होतीं हैं। उन्हीं के आसपास से कहानियां बुनी जातीं हैं, और ऐसी ही अनेक कहानियों की बुनियाद पर नॉवल का निर्माण होता है। कहानी के सिवाय नॉवल का वजूद महत्वहीन हो जाता है, संभवत यही कारण है कि कहानी नॉवल का अहम हिस्सा है। उसी संदर्भ में किरदार भी नॉवल का अहम अंग है। कभी-कभी कहान पढ़ कर भूल जाना स्वाभाविक होता है पर कुछ किरदारों में ऐसे गुण दोष होते हैं कि उनकी शख्सियत को भुला पाना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन होता है, जैसे शरद का ‘देवदास’, टोल्स्तोय की ‘अना’ और रामायण की ‘कैकेयी’।
कैनेडा निवासी, सुश्री स्नेह ठाकुर किसी परिचय की मोहताज नहीं, वे ‘वसुधा’ त्रिमाही पत्रिका की संपादक व प्रकाशक हैं. प्रस्तुत नॉवल ‘कैकेयी’-चेतना शिखा” उनका पहला उपन्यास है जिस के भाव-बीज महारानी कैकेयी के चरित्र, उनके मातृत्व के उन पक्षों पर है जो अतीत के गर्भ के इतिहास के पन्नों में दर्ज दफ़न हुआ है। इतिहास के पन्नों का मनोविश्लेषण तथा गहन चिंतन ही इस बेलौस लेखन को ऐसी धरातल पर ले आया है.
रामायण की जब जब बात आती है तो तसव्वुर की दीवारों पर कई तेवरी यादों के बिम्ब उतर आते हैं जैसे अयोध्या नगरी का वैभव, राजा दशरथ, उनकी तीन पत्नियां कौशल्या-सुमित्रा-कैकेयी और हृदय-पटल पर कैकेयी के कांड का सारा दृश्य जीवित हो उठता है, जहां उनके चरित्र का एक विकृत रुप सामने आता है। उनके चरित्र के अनेक पक्ष-पुत्र मोह, सौतेलेपन के भेद-भाव, षड़यंत्र रचने वाली नारी के रुप में उभर आते हैं। और उसी कुचक्र का अंजाम भी यादों में दोहराया जाता है-राम का बनवास, राजा दशरथ की मृत्यु, सीताहरण तथा लंका का ध्वंस होना।
रामायण का एक और सकारात्मक पहलू भी है जो कैकेयी के इस बर्ताव को दोष के कटघरे में खड़ा नहीं करता। संभवता कैकेयी की भूमिका में रामावतार का उद्देश्य शामिल रहा, जिसकी पूर्ति के लिए राम का वन गमन आवश्यक व महत्वपूर्ण क़दम था। इसमें मनोवैज्ञानिक दृष्टि से कैकेयी के अत्यंत कलंकित चरित्र पर, उसके माता- विमाता- कुमाता पक्ष पर शोध पूर्ण रुप से उल्लेख किया गया है।
O -मुंशी प्रेमचंद ने भी इस बात की गवाही देते हुए नॉवल के संदर्भ में कहा है-“ मैं नॉवल को इन्सानी जीवन का चित्र मानता हूँ। लेखक किरदार निगारी से इंसानी चरित्र पर रोशनी डाल कर उन पोशीदा रहस्यमयी गांठों को खोलने का प्रयत्न करता है। यही नॉवेल का मूल मक़सद है।“ O
आज के संदर्भ में भक्ति साहित्य में विश्व बंधुत्व की भावना को लेकर कई पहलू सामने आ रहे हैं। भारत में ही नहीं विदेश में भी इन पुरातन संदर्भों की चर्चा, परिचर्चा है, कैकेयी के माता-विमाता-कुमाता पक्ष को लेकर-कई सवाल सामने ले आती है। जैसे राम को अपने जाए पुत्र भरत से भी अधिक स्नेह करने वाली एक आदर्श माता का चरित्र अचानक ही कुछ क्षणों में संसार की कुटिल कुमाता के रुप में कैसे परिवर्तित हो गया? उनके चरित्र में आए इस बदलाव के पीछे क्या कोई गूढ़ रहस्य है जो एक साधारण मनुष्य की बुद्धि व नज़रिए को आंक पाने में असक्षम है?
शोधर्थियों ने भी अपने अपने कोणों से इस विषय वस्तु को गहराइयों तक खंगाला है और उतर पाने की संभावना को अर्थपूर्ण और तर्कपूर्ण बनाया है। विदेश में भी मंदिरों में, मठों में, स्वाध्याय बैठकों में इस विस्मयकारी चरित्र पर वाद विवाद करते है. स्वाध्याय class, में कभी गीता, रामचरित मानस पर कोई चर्चा परिचर्चा. और कभी उनके पात्रों कैकेयी, राम, भारत, रावन आदि के चरित्र का विश्लेषण.
सवालों के जवाबों की तलाश में शोधार्थी कुछ निष्कर्ष निकालते हैं, पर हर धारणा के जवाब के सामने एक नया सवाल खड़ा हो जाता है, जिससे सोचों को एक दिशा मिलती है जो कैकई के संपूर्ण चरित्र, उनके मातृत्व की भावना को, उन पर लगाए गए लांछनों को शोध का विषय बनाती है। ये रहस्यमई सवाल क्या उनके मातृत्व को एवं विमाता-कुमाता के घृणित चरित्र को एक कटघरे में लाकर खड़ा करते हैं? शायद इसीलिए श्री रामकथा के ग्रंथों से कैकेयी का न्याय संगत मूल्यांकन करना अत्यंत आवश्यक हो गया है।
o-एक शोधार्थी वक्ता ने लिखा है-“ हमारा लेखन ऐसा नहीं होना चाहिए कि पाठक हमें समझ पाए, बल्कि ऐसा होना चाहिए कि वह किसी भी तरह हमें गलत न समझें।“ 0-
यह एक माना हुआ सत्य है कि नारी की पूर्णता मात्रत्व में है, पर ऐसी सर्वगुण संपन्न राम की विमाता-कुमाता बनने का सौभाग्य चारों युगों में सिर्फ कैकेयी को ही प्राप्त हुआ। ऐसे पद पर पदासीन प्रतिष्ठित नारी ने एक ही दृष्टांत से चारों युगों में स्वयं को सबसे अधिक नीच कुमाता होने का श्रेय लिया। उसने अपने चरित्र को रसताल की गहराइयों में जानते हुए धंसने दिया, आखिर क्यों? क्यों वह मूक रहकर इन लांछनों को सहन करती रही? क्या वह मोह ही था जिसने कैकेयी को इतना नीचे गिरा दिया था कि उसने अपने सद्गुणों की छवि पर लांछन की कालिख पोत कर सदा-सर्वदा के लिए अपने चरित्र को इतिहास के अंधेरों में धकेल दिया? क्या मंथरा जैसी मंदबुद्धि, कुबुद्धि की सोच के एवज़ बहकावे में आकर, पुत्र मोह में डूबी एक दुर्बल माँ इतना बड़ा कलंक लेने को तैयार हो गई?
यह लेखक की कसोटी है और बड़प्पन भी कि वह अपने पात्र का रक्षक बन जाए, उसे बदनाम होने से बचा ले और हालातों के करवट बदलने पर उसे दोषी होने से भी दूर रखे! पूजा श्री की कविता के ये शब्द एक ऊर्जामाय संग्राम की मानिंद एक सार्थक ऐलान करते हुए कह रहे हैं--
“शब्द नहीं केवल गूंगे का संबोधन / खड़े हुए हैं--
खंडहर से बस्ती में हम / पत्थर की प्रतिभा में कितना आकर्षण जलते बुझते रहे अगरबती से हम!”
स्नेह ठाकुर जी ने भी अपने पात्र के पक्ष में सुरक्षा के चक्रव्यूह की अनोखी रचना की है जो उसके पात्र को राम के लिए अगाध प्रेम का प्रतीक बनाती है। संदर्भों की पठनीयता यही सिद्ध कर रही है कि इस कांड के अलावा कैकेयी का चरित्र, इस घटना से पहले या इस घटना के बाद कभी कहीं भी दुर्बल नहीं पाया गया।
कैकेयी को विदूषी, बुद्धिमती, शस्त्र व शास्त्र की ज्ञाता, शक्ति संपन्न वीरांगना माना गया है। अतःएक दासी की सलाह पर कैकेयी द्वारा इतना बड़ा निर्णय लेना उचित या संभव प्रतीत नहीं होता। क्या इसकी जड़ में कहीं कोई और कारण है? श्री राम और महारानी कैकेयी के संबंध अत्यंत प्रगाढ़ थे। यह पावन पुनीत बंधन एकतरफ़ा नहीं दोनों की ओर से परिपूर्ण रहा। एक मां अपने पुत्र को देखकर आनंद विभोर हो जाती है, राम को अपने पुत्र भरत से भी अधिक प्यार करते हुए जहां सगे-सौतेलेपन के भेदभाव का कोई अंतर ज़ाहिर नहीं होता, वहाँ अचानक इस परिवर्तन का कारण एक खोज का विषय बन जाता है, और रहेगा। क्यों? कैसे? फिर वही सवाल जवाबों की मांग करते हुए सामने टंगे हुए पाए जाते हैं।
जिस कैकेयी का मातृ प्रेम आकाश की ऊंचाइयों को छूता रहा, जिसने राम को भरत से बढ़कर माना, जिसे जन्म से ही स्नेहिल गोद में पाला पोसा, अपने आंचल के संरक्षण में बड़ा किया, वही कैकेयी उसी राम को बिना किसी दोष के, बिना किसी अपराध के इतना बड़ा दंड देने को तत्पर हो गई? क्यों, क्यों? यह सवाल भी अपने जवाब की तलब में मारा मारा फिर रहा है। श्रीराम खुद त्रिकालदर्शी थे। कैकेयी क्या, कोई भी ज्ञाता श्री राम की इच्छा मात्र के विरुद्ध अणु मात्र भी कार्य करने की क्षमता या सामर्थ्य का हक़दार न था, न ही ऐसी संभावना का कोई अस्तित्व ही था। फिर भी कैकेयी के श्री राम को चौदह वर्ष का बनवास देने के पीछे कौन सा कारण व उद्देश्य था?
क्या यह नियति है? जिसके वश में कैकेयी ने यह सब किया या एक सिद्धि की पूर्ति के लिए उससे करवाया गया?
राम के जन्म का प्रमुख कारण ही देवताओं की प्रार्थना पर राक्षसों व राक्षस राजा रावण को मारने के लिए हुआ। रामावतार एक उद्देश्य की पूर्ति के लिए ही था-
एक, असुरों के सर्वनाश के लिए,
दूसरा, वेदों की मर्यादा की स्थापना के लिए और
तीसरा राक्षस राजा रावण को मार कर धर्म की अधर्म पर विजय पाने के लिए। ये तीनों ही कार्य श्रीराम ने प्रति पादन किए।
कैकेयी का राम को वन भेजना नियति की ओर से एक आयोजन था- विशेष रूप से उस रावण वध हेतु भेजना, जिसे उसके पराक्रमी पति महाराज दशरथ भी न मार सके। यह कार्य किसी भी प्रकार संभव न होता अगर राज्य त्याग कर राम वन न चले जाते, और न ही देवताओं का कार्य सिद्ध होता!
राम कथा में दो बातें सामने आतीं हैं जिससे रामावतार का कारण स्पष्ट हो जाता है। राम नर के रुप में नारायण थे, उनका अवतार ही राक्षसों और रावण के वध के लिए हुआ। ध्येय साफ था-
-असुरों का सर्वनाश करना / -वेदो की मर्यादा को स्थापित करना
-धर्म की अधर्म पर विजय
शायद यही एक विकल्प था। राम को श्रेय दिलाने के लिए कैकेयी ने उन्हें बनवास भेजा जहां उनके द्वारा राक्षसों का वध करते हुए राम राज्य की स्थापना सम्पन्न हुई। श्री राम के लिए शायद पिता की वचनबद्धता में ही देवताओं के प्रति अपनी बद्धता, राक्षसों का संहार, अपने वचन का पालन कर पाने का रहस्य था!
कैकेयी सर्वगुण संपन्न गुणवंती, सौभाग्यशाली माता क्या कलंकनी हो सकती है? कैकेयी न होती तो रामकथा का यह स्वरूप कभी भी उजगार न होता, और रामायण के हर पात्र का चरित्र यूँ आदर्शमय पूर्णता के साथ सामने मुखर कर न आता। फिर भी एक सवाल मन में कुनमुनाता है- क्या कैकेयी का ध्येय धर्म की पुनर्स्थापना करना था? राम को विजयी व यशस्वी बनाना था? क्या राम के लिए बनवास का वर मांगना कैकेयी का राम के प्रति प्रेम और श्रद्धा थी? भक्ति साहित्य के हर युग में ये सवाल बार-बार अपना जवाब पाने के लिए दोहराए जाएंगे। जब जब धर्म की पुर्न स्थापना का प्रसंग उठेगा, कैकेयी का अविस्मरणीय पात्र आंखों के सामने रामायण को, उनके पात्रों के साथ पुनः जीवित करता रहेगा।

 

 

 


जयहिंद
समीक्षक: देवी नागरानी
22 अप्रैल 2016
उपन्यास: कैकेयी-चेतना शिखा, लेखिका: स्नेह ठाकुर, पन्ने 200, मूल्य: 250 रु, प्रकाशक: स्टार पब्लिकेशन, 4/5 बी. आसिफ़ अली रोड, नई दिल्ली 110022

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