संवाद हो रहा है
प्रति पल तुम्हारे संग
शब्द आते-जाते है
ज़हन में मगर
शब्द न हों तो भी क्या?
मैं निहारता हूँ तुम्हें
तुम भी तो मुस्कुराकर
पवन को लिए आओ
हल्के से झुक जाओ
इन्हीं अदाओं पर
हम मोहब्बत करते हैं
तुम्हारे धवल गूलों से
राग से वीतराग दर्शन
केसरी डंडी मानों
गेरुए रंग की ध्वजा !
*
पंकज त्रिवेदी
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