Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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शाम को घर लौटता हूँ

 
थका सा, पसीने से लथपथ 
चिंता की लकीरों की जाल में  
फँसा हुआ और काम के बोज को 
सर पे उठाता हुआ...   
सोचता हूँ कि थोडा आराम करूँ 
मगर आँगन में प्रवेश करते ही 
तुलसी का पौधा महक उठता है 
हरसिंगार का पेड़ मुस्कुराता है 
चिड़ियों की तरह चहकती हुई 
बेटियों की आवाज़ गूंजती है 
*
मेरे सारे दुःख-दर्द पलायन 
और मैं 'हाश' के उदगार से 
मन ही मन बोलता हूँ - 
'थेंक गॉड ...  ???? ' 
*
- पंकज त्रिवेदी
2 September 2014

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