Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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शाम

 
शाम
उदासी का आँचल
ओढ़कर आई थी 
बीत गई मगर अब 
कोई फ़र्क नहीं पड़ता मुझे !
तुम 
खुशियों के फूलों की 
टोकरी भर कर आई थी 
चली गई हो अपनी राह 
कोई फ़र्क नहीं पड़ता मुझे !
जीवन 
ऐसे ही जीना होता है 
हर किसीके साथ में ऐसा ही  
होता है और समझ भी आ गया 
ऐसे ही जीना होता है हमें !
कोई फ़र्क नहीं पड़ता मुझे !
पंकज त्रिवेदी

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