शाम
उदासी का आँचल
ओढ़कर आई थी
बीत गई मगर अब
कोई फ़र्क नहीं पड़ता मुझे !
तुम
खुशियों के फूलों की
टोकरी भर कर आई थी
चली गई हो अपनी राह
कोई फ़र्क नहीं पड़ता मुझे !
जीवन
ऐसे ही जीना होता है
हर किसीके साथ में ऐसा ही
होता है और समझ भी आ गया
ऐसे ही जीना होता है हमें !
कोई फ़र्क नहीं पड़ता मुझे !
@
पंकज त्रिवेदी
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