Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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अस्तित्त्व के बिखरे हुए टुकड़ों को

 
अस्तित्त्व के 
बिखरे हुए टुकड़ों को
समेटने की कोशिश 
जीवनभर करता रहा 
बहुतों ने नोच लिया है 
फिर भी कोशिश जारी थी 
मगर अब थक गया हूँ 
सोचता हूँ कि जिन्हों ने 
आजतक जिस्म की बोटी बोटी 
भी न छोड़ी है उन्हें अब रोककर 
क्या करूँगा मैं ! 
जिस्म का अस्तित्त्व टुकड़ों में 
हड्डियाँ गली हुई सी सूखती 
चमड़ी तो पहली उधेड़ दी थी 
क्या बचा पाया हूँ मैं?
प्रतिकार करता तो भी किसका?
सभी अपने ही तो थे - 
रिश्तेदार और दोस्तों के मुखौटे में 
अब भी कुछ बचा है, करोगे सौदा?
आप सोचते होंगे, अब क्या बचा होगा 
सही सोचते हैं आप सभी नोचने वाले 
क्यूँकि आपका अहंकार और ताकत  
कुछ सोचने नहीं देती सबकुछ पाने के सिवा  
अब जो मेरे पास है उसे आप देख नहीं सकते 
पा नहीं सकते और न उसे नोच सकते हैं 
अब सोचिये कि वो क्या होगा मेरे पास?
सुनो, जिसे बचा पाया हूँ वो है 
मेरी रूह ! 
उसे कैसे लूटोगे या नोंच लोगे?
पंकज त्रिवेदी
15 June 2018

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