सुबह हो या शाम
क्या फर्क पड़ता है
तुम मेरे हर शब्द में
शब्द से बुनती कवितामें
तुम आसपास होती हो
तो कभी मेरे अंदर बैठकर
लिखवाती हो अपने ही
जज़्बात को झरने की तरह
बहती हो नदी बनकर !
तुम्हें प्रकृति से लगाव है
क्यूंकि तुम खुद प्रकृति का
रूप और मैं तेरा शिव हूँ !
प्रकृति और शिव को कोई
कैसे अलग देख पाएगा या
महसूस कर पाएगा ?
तुम ही महसूस करो न मुझे
तुम्हारी प्रकृति की चेतना
जग जाएँगी और शिव तेरा !
*
पंकज त्रिवेदी
13 Aug 2017
*
(सर्वाधिकार सुरक्षित)
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