Swargvibha
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तुम मेरे अज़ीज़ हो

 
तुम मेरे अज़ीज़ हो - पंकज त्रिवेदी 
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मेरी शुभकामाएं कभी 
औपचारिकता का परिचायक नहीं होती 
फूल के ओसबिंदुओं की तरह 
आँखों की नमीं को भी देखा करो कभी 
तुम्हारी खुशियों में शरीक हो जाता हूँ मैं 
क्यूंकि तुम मेरे अज़ीज़ हो !
तुम्हारे जीवन के संघर्ष में तुम भले ही मुझे 
देख न पाओ कभी, फिर भी मैं उन दिनों में भी 
तुम्हारे साथ होता हूँ हर दिन, हर पल 
एक अहसास बनकर, तुम्हारे लिए दुआ का 
गुलदस्ता लेकर माथा टेकता हूँ मंदिर-मस्जिद में 
क्यूंकि तुम मेरे अज़ीज़ हो ! 
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