Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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तुम न चाहकर भी मेरे इर्दगिर्द घूमती हो

 

तुम न चाहकर भी मेरे इर्दगिर्द घूमती हो जैसे किसी पतंगे से शर्त लगाकर आई हो
किसी झरने में पैर भिगौता हुआ बैठा मैं
गुनगुनाऊँ जो गीत चुपके से सुन लेती हो

घर से निकलते ही खिडकी खुल जाती है
जैसे दरमियाँ हमारे फाँसले कम कर देती हो

मोहब्बत न करने की कसम खाकर तुम
अपनी कसम को कैसे तुम छल रही हो
- पंकज त्रिवेदी
 

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