तुम्हारे आने की भनक सुनाई देती हमेशा,
पलपल तूफ़ान की तरह उमड़ती हो और
मैं देखता रहता तुम्हें सहज भावों से !
ज़िंदगी के हर एक पल को मैंने बहुत
करीब से देखा, सीखा और सजता गया,
खुद्दारी से जीने के लिए लड़ता रहा !
तुम अब आई हो अब ऐसा तो नहीं है
तुम तब भी थी, आज भी हो, रहोगी सदा
चाहें दुश्वारियां हो, खुशी हो, तुम तो हो !
हमेशा कहता हूँ, ध्यान से सुनो, देखो
मन शांत रखो, स्थिरता प्राप्त करो
ज़ख्म देने वाले दूर के नहीं अपने होते हैं !
अनुभवी प्रभाव बढ़ें तो अपेक्षा ठुमका लेती है
कभी तुम्हारे ज़रिए, कभी मेरे या कभी उनके
वो मिलना जरूर चाहें तो रोक लो, खुद को !
अमावस की रात ढल जाएं तब पूनम का चाँद
भीतर का स्खलन भूस्खलन से भयानक होता है
स्मशानवत शांति से एक मासूम बच्चा उठता है !
*
पंकज त्रिवेदी
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