तुम्हारे आसपास - पंकज त्रिवेदी *
तुम्हारी बाराखडी से न जाने
कितने अर्थ निकलते है
मैं देखता हूँ तुम उन अक्षरों-शब्दों में
उलझी हुई दिन-रात कुछ न कुछ
कहती रहती हो और दर्द के आवरण में
खुद को कैद करके अपने नसीब को कोसती हो
मैं हूँ कि कुछ भी आता नहीं है मुझे
न अक्षरों-शब्दों का ज्ञान है न लिखने का ढंग
न ठीक से कुछ कह भी पाता तुम्हें और
चाहकर भी अनकही बातों को हवा के संग
बहाता हुआ, गुनगुनाता हुआ घूमता हूँ
तुम्हारे आसपास और रचता हूँ जज़्बात का एक
बहुत बड़ा सा वर्तुल ! उसी में से न मैं दूर कभी
जा पाया न मैंने किसी ओर को देखा !
प्यार के नाम की मोहर लगाने की आदत नहीं
न मुझे खुद दुःख-दर्द बांटने की आदत रही
चुपचाप तुम्हारे आसपास रहता हूँ और यही
मेरे अस्तित्व का प्रमाण होगा तुम्हारे लिए !
कहो अब, बाराखडी के अक्षर-शब्दों में रहूँ या
तुम्हारे आसपास ??
***
(पेंटिंग : आबिद शेख - गूगल से)
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