Pankaj Trivedi
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तुम्हारी कोमल भावनाओं का नशा अजब है
तुम्हारे न होने के बीच उनका होना महज़ है
थिरकते पैरों के घूँघरू बोलते थे कभी कभी ही
तुम्हारे आने की सोच में झंकार जो सहज है
धुप में आँखें जलाता हुआ खड़ा हूँ खिड़की में
तुम्हें कल देखी थी आज परछाईं भी गज़ब है
कुछ लोग बारीकियों से नांपते रिश्ते की चादर
जो कभी हमने ओढी थी आज वो हमारे भरम है
- पंकज त्रिवेदी
(तसवीर : मेरे गाँव में अपने रसोईघर की खिड़की से)
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उन गलियों को तेरा इंतज़ार है आज भी
जहाँ बिताए होंगे तुमने लम्हें कभी कभी
इस जनम की तेरी लेनदेन हों न हों शायद
कोइ तो बंधन छुपाया होगा तूने वहाँ कभी
- पंकज त्रिवेदी
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