तुम्हारी संघर्षगाथा सुनता हुआ
मैं भी कदम कदम पर साथ चलता था
क्यूंकि संघर्षो का आनंद लेने के लिए
न जाने कितना कुछ पीछे छोड़ आए हैं हम !
मगर तुम्हारी बात से सुकून जरूर मिला हमें
हमने जो भी किया, जो भी सहा, अपने ही
बलबूते पर ! न करज़दार है हम और न कोई
मेहरबां है हम पर.. !
हमारी मेहनत पे खुदा भी सोचता होगा
चाहें कितनी भी कसौटी की उसने
न हमने कभी उफ्फ़ किया न कोई शिकायत
ज़िंदगी के हर कदम पर लडने के लिए नहीं
डटकर मुकाबला करने का हौसला है मुझमें !
आज तुमसे मिलकर मैं खुद ही पर
गर्व महसूस करने लगा हूँ क्यूंकि
हम वो है जो किस्मत खुद बनाते हैं और
दूसरों की किस्मत के लिए दिल से दुआ देते हैं
तुम्हारे जज़्बात से मेरे दिल ने जो तार जोड़ दिया
तुम नहीं मानोगी... हम पहलीबार कराज़दर हो गए !
- पंकज त्रिवेदी
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