Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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उमस भरी शाम

 
उमस भरी शाम
तुम्हारा वॉक पे जाना 
मेरे विचारों में खो जाना 
बातें करने को मन उतावला 
और मेरी व्यस्तता से 
निराशा को लिए तुम्हारा मौन !
शहर की चकाचौंध रौशनी से 
एतिहासिक इमारतों का लुत्फ़ 
अपने मोबाइल कैमरे में कैद करना 
तुम्हारा बस चलता तो मुझे भी !
दिनभर की व्यस्तता तुम्हारे 
अनुशासन से चलती है, जैसे 
तुम्हारे इशारे से बहुत कुछ ! 
अपने जज़्बात को भी तुमने 
कईबार अनुशासन के दायरे में 
कैद कर लिया है अकारण ! 
मैं जानता हूँ तुम पहले ऐसी न थीं 
न आज भी हो... मगर इतना कहूं 
यह अनुशासन उन अभावों से 
जन्म लेकर आएं है तुम्हारी गोद में
जैसे प्रारंभिक स्कूल के बच्चे !  
*
पंकज त्रिवेदी
20 June 2018

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