उमस भरी शाम
तुम्हारा वॉक पे जाना
मेरे विचारों में खो जाना
बातें करने को मन उतावला
और मेरी व्यस्तता से
निराशा को लिए तुम्हारा मौन !
शहर की चकाचौंध रौशनी से
एतिहासिक इमारतों का लुत्फ़
अपने मोबाइल कैमरे में कैद करना
तुम्हारा बस चलता तो मुझे भी !
दिनभर की व्यस्तता तुम्हारे
अनुशासन से चलती है, जैसे
तुम्हारे इशारे से बहुत कुछ !
अपने जज़्बात को भी तुमने
कईबार अनुशासन के दायरे में
कैद कर लिया है अकारण !
मैं जानता हूँ तुम पहले ऐसी न थीं
न आज भी हो... मगर इतना कहूं
यह अनुशासन उन अभावों से
जन्म लेकर आएं है तुम्हारी गोद में
जैसे प्रारंभिक स्कूल के बच्चे !
*
पंकज त्रिवेदी
20 June 2018
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