यह कैसी खुशबू फैली है!
तुम्हारे आने की ख़बर
यहीं ख़ुशबू से मिलती है।
फागुन ने दस्तक दी है।
जैसे तुम जब भी आती हो
मेरे लिए यह सिर्फ उत्सव नहीं।
प्रति वर्ष मेरे लिए अगले वर्ष की
संजीवनी बनकर आता है फागुन!
और इस बार तुम लौट आई हो।
तुम्हें याद होगा शायद वो दौर!
हम अलग हुए थे नासमझी से
मगर मन से, दिल से साथ थे
यह तुम्हारे प्यार की ताकत है।
कैसे भूल गया था; मैं सबकुछ
इसका जवाब क्या दूंगा तुम्हें।
मेरे साथ ऐसा होता है, कभी-कभी
मगर संभल जाता हूँ; तेरे कारण।
आज फिर बसंत का मौसम है।
पुर-बहार में खिला हुआ-सा;
और तुम्हारे आने की ख़ुशबू भी
यही तो है;जो पुनः जोड़ देती है।
यह रिश्ते अनमोल इसलिए हैं।
कई बार मन की अस्थिरता
सब कुछ भूला देती है; और मैं।
पुनर्जीवित हो जाता हूँ तुझमें!
*
पंकज त्रिवेदी
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