Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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न जाने कितनों दिनों से

 
न जाने कितनों दिनों से 
बारिश का कहर, बाढ़ का पानी 
अंदर बाहर बाढ़ !
तुम्हारा भीतर से यूँ बह जाना  
अनिवार्य लगता है कभी कभी !
अच्छा है तुम औरत हो !  
मगर मेरी आँखें डबडबाई हुई सी 
बहने से रोकती है मगर ऐसा भी हों 
बाँध का सब्र टूट जाएं और ... 
अरे ! सुनो तो -  
आज थोड़ा सा बुखार है,  
ज्यादा नही,  चिंता न करो.
ऐसा लगता है -
जीवन थम सा गया है 
मगर दिल का धड़कना
तुम्हारी मौजूदगी तो है ! 
***
पंकज त्रिवेदी
24/07/2017

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