स्मृतियाँ - पंकज त्रिवेदी
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स्मृति की परतों में न जाने
क्या क्या रहस्य छुपा हुआ है
सबकुछ जानते हुए कितना कुछ
छूट जाता है हमसे...
महीनों सालों के बाद न जाने
अचानक ही मन की ज़मीं में
भूचाल आता है और कहीं से
कुछ भी उभरकर सामने आता है
बचपन की मासूमियत कहीं तो
कहीं दोस्ती दुश्मनी की धूपछाँव
रिश्तों की कोमलता से बंधे हम
तो कहीं रिश्तों की आड़ में कटते हम
खुशियाँ नवजात की होती तो कभी
बिछडने का गम रात बनकर आता
मन की गहराई कभी नवनीत ले आती
तो कभी भयावह स्मृतियों के संग
कभी माँ की पुचकार सुनाई देती
कभी दोस्तों की मौज मस्ती में
कारवाँ चलता रहता और हम भी
फिर भी क्यूं मन अकेला सा...?
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