Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
Administrator

देखना

 

आप देख सकते हैं मुझे,
यूँ ज़ार ज़ार रोते,
बेज़ार होते,
रोते की जैसे उफनता हो समुद्र,
आँसू के उमड़ते कि जैसे बेसभाल हो लहर,
गाते गीतों को उल्टा पुल्टा,
भूलकर अन्तरा और मुखड़ा,
चलते टेढ़े मेढ़े,
भरते लम्बे डग,
बेहद लम्बे डग,
जैसे अव्यवस्थित हो चाल,
जैसे शर्मीली हो चाल,
आंकी-बांकी, तिरछी,
चाल हो जैसे चलना ये जानते हुए,
कि खुफिया निगाहें हैं आपपर,
कि गलत है घुसपैठ,
कमरे में आपके, जाने किसकी,
चाल हो ऐसी जो न जाने,
कि कहाँ देखा जा रहा है चलचित्र ये।
आप देख सकते हैं,
ये सब।
किन्तु जो आप नहीं देख सकते,
मेरे अभी अभी दरवाज़ा खोलकर दाखिल होते,
उस घर में,
जो मेरा था,
मैं उस हर युद्ध ग्रस्त आदमी का चेहरा हूँ,
दास्तान उसकी,
जिसका घर ध्वस्त हुआ,
कहीं न कहीं युद्ध से,
ध्वस्त किया गया,
छुड वाया गया,
छूट गया, किसी देश में,
कह रहा हो वह कि वह उसी का देश है,
वहीँ का है वह,
सारा ज़ज्बा उसका,
आप देख नहीं सकते,
मन की कंदराएं ये,
गुफाएं ये,
मेनका का नृत्य यह,
अप्सरा संवाद यह,
इंद्र सभा की दैवी धुनें,
आप देख नहीं सकते,
मुझे यूँ बीते कल में प्रवेश करते,
मेरे घर के कमरों में विचरते।

 

 

पंखुरी सिन्हा

Powered by Froala Editor

LEAVE A REPLY
हर उत्सव के अवसर पर उपयुक्त रचनाएँ