जैसे कोई वक़्त से पहले,
खड़ा हो जाये,
अपनी दो टांगों पर,
बनने से पहले,
आदमी और औरत,
ऐसे एक कुनबे में,
ऐसे लोगों की जमात में,
अचानक मुड़कर देखते,
कि ये जो नज़र आ रहा है,
चेहरा बदहवास ये,
मिलता आपकी शिक्षिका से,
मानो उनकी छोटी बहन का,
चौथी बहन का,
और फिर एक ढर्रा बन जाना,
ऐसे कम उम्र चेहरों का,
हर किसी श्रेष्ठ का,
और दिखना किन्ही ख़ास जगहों पर,
किन्ही ख़ास समय,
जैसे कहते हों,
वो कोई बात,
जो कहने का उन्हें हक नहीं,
जैसे अगर आपने मेडिकल कॉलेज में,
लिया हो दाखिला,
तो हर किसी डॉक्टर को हक नहीं,
ये बताने का,
कि डॉक्टरी की पढाई पढ़ते वक़्त,
कितनी मशक़्क़त की उसने,
और बदले में वैसी ही मशक्क़त,
आपसे करवाने का।
इन बातों के लिए,
एक करिकुलम होता है।
पंखुरी सिन्हा
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