रोज़ देखती हुं मैं तुम्हें
कि तुम्हारी आंखों से मोहब्बत है मुझे
इन आंखों में ना जाने कितने ही जहां की
खूबसूरतियां लिये चल रहे हो तुम
कितनी ही कहानियां लिये चल रहे हो तुम
कितनी ही शरारतें की चमक
कितने ही टूटॆ दिलों के आंसु लिये चल रहे हो तुम
किसी मोटी लाल किताब की तरह
ना जाने कितने रहस्य छुपाये हो
अपने पीले पन्नों में
मुझसे नज़रें नहीं मिलाते तुम
कि कहीं मैं छल से तुम्हारी आंखो के पन्नों में से
कोई रहस्य ना चुरा लूं
और उसे लफ़्ज़ों में पिरो कर
ना लिख दूं कोई कहानी या कविता
कि यकींन नहीं है तुम्हें मेरे लफ़्ज़ों पर
कि कहीं वो कोई नाइंसाफ़ी ना कर दें
तुम्हारी कहानिय़ॊं के साथ
कि मोहब्बत है तुम्हें तुम्हारी कहानिय़ॊं से
और मुझे मेरे लफ़्ज़ों से
तभी तो तुम्हारी पलकों के नीचे से
चुरा लायी मैं ये खूबसूरत सी कविता
Paribhasha Yadav
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